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शनि की महादशा

  शनि की महादशा, ढैया और साढ़ेसाती

 

शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र है ।मनुष्य के अछे बुरे काम का फल शनिदेव ही देते है । 


 साढ़ेसाती, ढैया होने पर हमारे शरीर में लोहे का संतुलन बिगड़ने के कारण अनेक व्यवधान उत्पन्न होते हैं लोहा शक्ति का प्रतीक है अधिक मात्रा में मस्तिक पर पहुंचने पर क्रोध, झगड़ा लड़ाई, पागल पन, चिड़चिड़ापन और कई प्रकार के व्यवधान को उत्पन्न करता है।-

 



भूत प्रेत बाधा होना 

प्रोपर्टी संबंधित विवाद, भाइयों से झगड़ा और परिवार से मनमुटाव 

अनैतिक संबंध का बढ़ना 

कर्ज का बढ़ना और उसे उतारने में मस्किलें आना 

कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना पड़ सकता है 

नौकरी न लगना, अनचाही जगह पोस्टिंग हो जाना 

प्रमोशन में बाधा आना 

 व्यवसाय में मंदी का आना

 हर मनुष्य अपने जीवन में कोई ना कोई पाप अवश्य करता है उस पाप का दंड मनुष्य के जीवन में जब शनि की ढैया, साढ़ेसाती, महादशा चल रही होती है उसी समय उसे दंड मिलता है इस दंड को देने के लिए भगवान शनि के गण जैसे ऊपरी शक्तियां नियुक्त होती हैं और वह हमारे जीवन को तहस-नहस कर देती हैं।

जब शनि की महादशा होती है तो व्यापार में मंदी आना स्वाभाविक है काम काज रुक जाना, पैसा ज्यादा खर्चा होना, बचत नहीं होना 


शनि की महादशा से बचने के उपाय -


1. सूर्यास्त के पश्चात भगवान हनुमान की पूजा करें, काली तिल के तेल का दिया और नीले फूलों का प्रयोग करें और सिंदूर का अवश्य लें। 


2. 10 नामों द्वारा शनिदेव की पूजा करें :- मंद, पिप्पलाद, यम, सौरि, शनै, कौणस्थ और कृष्ण। 


3. सिद्ध शनि यंत्र की मंदिर में और कार्यस्थल पर स्थापना करें 

4. नीलम रत्न की अंगूठी धारण करें 

5. प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। 

6. प्रतिदिन कौवे को रोटी खिलाएं।


7. तिल, उड़द, तेल, काला वस्त्र और जूते का दान करना चाहिए। 

8. अंधे, अपंगों, गरीबों, सेवकों और सफाई कर्मचारियों की सहायता करें और उन्हें दान दें।


9. भैरव बाबा को शराब चढ़ाएं । 


10. शनिवार को सरसों का तेल न खरीदें नहीं तो आपको परेशानियां उठानी पड़ सकती है। 

शनिदेव की पूजा, पीपल पर जल चढ़ाना, दीप जलाने से शनि के क्रोध से बचाव होता है।

 पूरे शरीर में लगभग तीन-चार ग्राम लोहा होता है शनि ग्रह के प्रभाव के कारण वह लोहा हमारे शरीर में ऊपर की ओर खींचा जाता है जिससे हमारे शरीर का बैलेंस बिगड़ जाता है इसीलिए उस बैलेंस को सुधारने के लिए काले घोड़े की नाल से बने हुए लोहे की अंगूठी पहनने की सलाह देते हैं। 

नीलम नीले रंग का होने के कारण शनि का उपरत्न माना गया है यह शनि के खराब किरणों को वापस कर वह रक्षात्मक तंत्र को मजबूत करता है इससे ऊपरी बाधा और शनि के खराब किरणों से रक्षा होती है इसलिए शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढैय्या में नीलम रत्न को अवश्य धारण करना चाहिए।


 इसके सिवा स्वयं मंत्र जाप या ब्राह्मणों से मंत्र जाप करवाने से शनि के खराब किरणों को भी रोका जा सकता है 

शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र -  ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।   
शनि देव महाराज के वैदिक मंत्र - ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये।
शनि देव का एकाक्षरी मंत्र  - ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।
शनि देव जी का गायत्री मंत्र - ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।

साढ़ेसाती से बचने के मंत्र- 

ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।

ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

इसकी जाप की सीमा कम से कम 23000 जाप की सीमा बताई है इससे अधिक से अधिक जाप करवाया जा सकता है उससे अधिक लाभ मिलता है ऐसा इसलिए होता है कि पृथ्वी से शनि ग्रह की दूरी 23000 जाप से पहुंच जाती है और वह शनि ग्रह के खराब प्रभाव को रोक देती है अधिक से अधिक जाप करवाने से अधिक लाभ इसलिए होता है कि वह ज्यादा समय तक शनि के खराब प्रभाव को रोके रखती है।

उसी प्रकार शनि यंत्र कि अपने घर में पूजा करने से शनि ग्रह के प्रभाव से बचा जा सकता है यह यंत्र शनि ग्रह के प्रभाव को उल्टा शनि की ओर मोड़ देता है जिससे हमें शनि ग्रह से बचाव होता है इसके सिवा ज्योतिषियों के द्वारा शनि की पूजा का विधान बताया जाता है इसका यह कारण है भगवान शनि दुष्ट प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों को दंड देने के लिए नियुक्त किए गए हैं|


शनि स्त्रोत


नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।


नम: कालाग्निरुपाय कृतान्ताय च वै नमः। 1


नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।


नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2 


नम: पुष्कलगात्राय स्थुलरोम्णेऽथ वै नमः।


नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3


नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नमः।


नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4


नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।


सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5


अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।


नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते। 6 


तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।


नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः। 7 


ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।


तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8


देवासुरमनुष्याश्र्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।


त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9


प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे। 


एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:। 10



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