शिवमंदिर का निर्माण ..
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👉पूजा पाठ ,अनुष्ठान,पुरुश्चरण,यंत्र ,मंत्र ,तंत्र पूजा और अन्य देवी देवताओं के मंदिर निर्माण से कही अधिक फलदायी पुण्यक कहा गया शिव मंदिर निर्माण को क्योंकि बाकी सभी कार्य एकबार फलदायी है या अन्य देवी देवता के मंदिर सिर्फ उनके आवरण देवताओ की पंचायत तक सीमित है जब कि शिव मंदिरमे स्वयं ही 2732 देवी देवताओं का स्थान होता है और यावत चंद्र दिवाकरो जहाँतक ये ब्रह्मांड का अस्तित्व होता है तबतक वो फलदायी रहता है
👉 शिवमंदिर एक यंत्र है , विधि विधान पूर्वक निर्माण किये गए शिवालय कॉस्मेटिक ऊर्जा आकर्षण करता है ये विश्व के वैज्ञानिकोंने सिद्ध किया.निराकार ब्रह्म शिव जो ऊर्जा प्रकाश पुंज स्वरूप है उनकी ऊर्जा शिवालय के साथ स्वयं ही जुड़ जाती है इस प्रकार का ये यंत्र निर्माण हमारे ऋषिमुनियों की विश्व को भेट है .इसलिए ही शिवालय की ओरा सबसे ज्यादा होती है
👉 विद्वान सोमपुरा ओर ज्ञाता पंडितो के मार्गदर्शन से पूर्ण विधि विधान पूर्वक बने हमारे सभी ज्योतिर्लिग धाम इसलिए ही प्रचंड ऊर्जा के केंद्र है .प्रकृति और तत्व के उपासक सनातन धर्म की ऋषि परंपरा सतयुग में सिर्फ शिवालय ही निर्माण करते थे ,क्योंकि तमाम देवी देवता वीर गण भैरव जति सती ग्रह नक्षत्र ये सभी की स्थापना शिवालय में स्वयम ही हो जाती है ये रहस्य उन्हें पता था
👉 शिवालय की चोरस निम्ब को ताम्र पट्टी से ऊर्जा वाहक बनाने के साथ शिवलिंग के स्थान के नीचे दश गज ऊर्जा स्तम्ब स्थापित किया जाता है , शिवलिंग का पूर्वमुख ( तत्पुरुष - सूर्यदेव ) पश्चिम मुख ( सद्योजात - महागणपति ) उत्तरमुख ( वामदेव - नारायण ) दक्षिणमुख ( अघोरेश्वर - भगवती ) ओर उर्ध्व मुख ( ईशान - महादेव रुद्र ) है .शिवलिंग की चोमेर गोलाई में 64 योगिनी ओर क्षेत्रपाल है .शिवमंदिर गर्भ गृह की निम्बमे नवग्रह की स्थापना है .पार्वती के स्वरूपमे महालक्ष्मी महासरस्वती महाकाली तीनो स्वरूप है दिशा देवो के साथ गुम्बजमे देवो ,यक्षों, किन्नरों,गंधर्वो की स्थापना है
👉 चारो प्रहर राजसी पूजन किया जाता है .शिवालय में चतुर्थी को महागणपति की विशेष पूजा , षष्ठी की सूर्यपूजा , एकादशी की नारायण पूजा ,पूर्णिमा की शक्ति पूजा और अमावास्या की रुद्र पूजा की जाती है .पूर्ण विधान से जहा राजसी पूजन होता हो उस मंदिर की ओरा में प्रवेश करनेसे ही तमाम आधी व्याधि उपाधि का अंत होता है
👉आदिनाथ शिव--
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👉सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
👉शिव के अस्त्र-शस्त्र ---
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शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।
👉शिव का नाग---
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शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
👉शिव की अर्द्धांगिनी--
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👉शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
👉शिव के पुत्र--
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👉शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
👉शिव के शिष्य---
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👉शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
👉शिव के गण--
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👉शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। शिवगण नंदी ने ही 'कामशास्त्र' की रचना की थी। 'कामशास्त्र' के आधार पर ही 'कामसूत्र' लिखा गया।
👉शिव पंचायत---
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भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
👉शिव के द्वारपाल---
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👉नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
👉शिव पार्षद---
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👉जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
👉सभी धर्मों का केंद्र शिव---
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👉शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभक्त हो गई।
👉बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
👉देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव--
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👉भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
👉 शिव चिह्न---
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👉वनवासी से लेकर सभी साधारण व्यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
👉 शिव के अंश अवतार---
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👉वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं।
वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव
👉तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
👉शिव भक्त : ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
👉शिव मंत्र : --
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👉दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।
👉शिव व्रत और त्योहार :
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👉 सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
👉 शिव प्रचारक :
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👉भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
👉शैव परम्परा --
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👉: दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
👉 शिव के प्रमुख नाम -+
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:👉 शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
👉अमरनाथ के अमृत वचन :
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👉शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
👉 शिव ग्रंथ :
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👉 वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
👉शिवलिंग
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: वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
👉बारह ज्योतिर्लिंग ---
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👉: सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
👉शिव का दर्शन :
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👉 शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
👉शिव और शंकर
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👉 : शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं– शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं।
👉वर्णित किये गए ये सभी देवी ,देवता ,ऋषिमुनि शिवमन्दिरमे स्वयं ही वास करते है इसलिए लिखा कि हजारो जन्मो के संचित पूण्य कर्म हो तो शिवालय का निर्माण का सौभाग्य प्राप्त होता है , अगर ईश्वर कृपा से साधन सम्पन हो तो शिवमंदिर यथाशक्ति अनुसार बनाना चाहिए
शिवजी की #आधी #परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योति माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र।
'भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है।
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सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं और वीर्य निर्मित और 5 अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। जिससे शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदशिक्षा ही करने का शास्त्र का आदेश है।
#शास्त्रों में अन्य स्थानों पर मिलता है कि #तृण, #काष्ठ, #पत्ता, #पत्थर, #ईंट आदि से ढके हुए सोम सूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है,
शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
किस ओर से करनी चाहिये परिक्रमा
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भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जल स्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।
श्री महाकाल महामंत्र
।। ॐ ऐं क्लीं महाकालाय हूँ ठः ठः ह्रीं ब्लूं ॐ महाकालाय स्वाहा ।।
बिल्व वृक्ष-
1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते l
2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है l
3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है l
4. चार, पांच, छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्र पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है l
5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है एवं बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।
7. बेल वृक्ष को सींचने से पित्र तृप्त होते है।
8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।
10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी जीव सभी पापों से मुक्त हो जाते है l
11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।
कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं l
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से मिलता है क्या फल -
1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।
2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।
3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।
4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए।
शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है -
1. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।
2. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।
3. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।
4. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।
5. शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।
6. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
7. मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा (टीबी) रोग में आराम मिलता है।
शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है -
1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।
3. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।
4. शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।
5. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।
6. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
7. कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।
8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर
सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
10. लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
11. दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।
महादेव के गले में नागराज वासुकी
★वासुकी को नागलोक का राजा माना गया है। वो भगवान शिव के परम भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग की पूजा अर्चना करने का प्रचलन भी नाग जाति के लोगों ने ही आरंभ किया था। शिवजी वासुकी की श्रद्धा और भक्ति से बेहद खुश थे। इसी के चलते उन्होंने वासुकी को अपने गणों में शामिल कर लिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नागों के देवता वासुकी की भक्ति से भगवान शिव बेहद खुश थे। क्योंकि वो हमेशा की शंकर जी की भक्ति में लीन रहते थे। तक प्रसन्न होकर शिवजी ने वासुकी को उनके गले में लिपटे रहने का वरदान दिया था। इससे नागराज अमर हो गए थे।
★समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को मेरू पर्वत के चारों ओर रस्सी की तरह लपेटकर मंथन किया गया था। एक तरफ उन्हें देवताओं ने पकड़ा था तो एक तरफ दानवों ने। इससे वासुकी का पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। इससे शिव शंकर बेहद प्रसन्न हुए थे। इसके अतिरिक्त जब वासुदेव कंस के डर से भगवान श्री कृष्ण को जेल से गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते झमाझम बारिश हुआ थी। इस बारिश में भी वासुकी नाग ने ही श्री कृष्ण की रक्षा की थी। मान्यता तो यह भी है कि वासुकी के सिर पर ही नागमणि विराजित है
1- जटा में गंगा और त्रिनेत्र में अग्नि
2- चन्द्रमा में अमृत और गले मे जहर
3- शरीर मे भभूत और भूत का संग
4- गले मे सर्प और पुत्र गणेश का वाहन चूहा और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर
5- नन्दी (बैल) और मां भवानी का वाहन सिंह
6- एक तरफ तांडव और दूसरी तरफ गहन समाधि
7- देवाधिदेव लेकिन स्वर्ग न लेकर हिमालय में तपलीन।
8- भगवान विष्णु इन्हें प्रणाम करते है और ये भगवान विष्णु को प्रणाम करते है।
शिव- शक्ति आपके मूल व वास्तविक माता पिता है । वे अजर अमर हैं । वे आपके शरीर के भीतर ही रहते हैं । और जन्म जन्मांतर से आपके साथ हैं और निरन्तर आपके कल्याण हेतु प्रयासरत रहते हैं ।
। सब कुछ शिव से आता है, और फिर से शिव में चला जाता है।
आदियोगी शिव का अर्थ – पहले योगी और पहले गुरु
योग विज्ञान का पहला संचार कांतिसरोवर के किनारे हुआ जो हिमालय में केदारनाथ से कुछ मील दूर पर स्थित एक बर्फीली झील है। यहां आदियोगी ने, इस आंतरिक तकनीक का व्यवस्थित विवरण अपने पहले सात शिष्यों को देना शुरू किया। ये सात ऋषि, आज सप्तर्षि के नाम से जाने जाते हैं। ये सभी धर्मों के आने से पहले हुआ था।
तो शिव शब्द “वो जो नहीं है” और आदियोगी दोनों की ही ओर संकेत करता है, क्योंकि बहुत से तरीकों से ये दोनों पर्यायवाची हैं। ये जीव, जो एक योगी हैं और वो शून्यता, जो सृष्टि का मूल है, दोनों एक ही है। क्योंकि किसी को योगी कहने का मतलब है कि उसने ये अनुभव कर लिया है कि सृष्टि वो खुद ही है। अगर आपको इस सृष्टि को अपने भीतर एक क्षण के लिए भी बसाना है, तो आपको वो शून्यता बनना होगा। सिर्फ शून्यता ही सब कुछ अपने भीतर समा सकती है। जो शून्य नहीं, वो सब कुछ अपने भीतर नहीं समा सकता। एक बर्तन में समुद्र नहीं समा सकता। ये ग्रह समुद्र को समा सकता है, पर सौर्य मंडल को नहीं समा सकता। सौर्य मंडल ग्रहों और सूर्य को समा सकता है, पर बाकी की आकाश गंगा को नहीं समा सकता। अगर आप इस तरह कदम दर कदम आगे बढ़ें, तो आखिरकार आप देखेंगे, कि सिर्फ शून्यता ही हर चीज़ को अपने भीतर समा सकती है।
शिव ही ऐसा गुरू है जो हर किसी की गूरू हो सकता है उस से बेहतर गुरू कोई हो ही नहीं सकता है,
चाहे वे किसी भी र्ध्म संप्रदाय के लोग क्यों न हो, यह तिनसूत्र के माध्यम से वह आपके भी गुरू हो सकता है,
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