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दिव्य ऊर्जा

 दिव्य ऊर्जा क्या है- 

हमारे चारों वेद और ग्रंथों के अनुसार अनेक ब्रह्मांडो में एक ही परम ऊर्जा व्याप्त है जो सर्वत्र विद्यमान है और सर्वव्यापी है।



यह ब्रम्हांड में उपस्थित समस्त प्रकार की ऊर्जाओं, प्राण ऊर्जा का सम्मिश्रण है, कहीं - कहीं पर इसे प्राण ऊर्जा के नाम से भी जाना जाता है ।

जिसे वर्तमान मेे विज्ञान की भाषा में cosmic energy भी कहा जाता है, 

 वैज्ञानिकों ने अनेक शोध कर के यह नतीजा निकाला है कि अस्तित्व में जो कुछ भी मौजूद है वह सभी ऊर्जा है, 


ब्रह्मांड मेे एक सर्वव्यापी ऊर्जा है जिसका जीवन से संबंध है,  सजीव,निर्जीव सभी के बाह्य शरीर के चारो तरफ इस ऊर्जा को 'किर्लियन फोटोग्राफी' की सहायता से देखा जा सकता है जिसे "औरा" या प्रभामंडल नाम से जाना गया 


लाखों वर्ष पूर्व ही हमारे ऋषियों,योगियों, ने अनंत ब्रह्मांड,अनंत कोटि सूर्य , ब्रह्मांडीय ऊर्जा - प्राण ऊर्जा,औरा - प्रभामंडल, प्राणकोश - सूक्ष्म शरीर,और ऊर्जा उपचार की विस्तृत व्याख्या तब ही कर दी थी 



हमारा शरीर मूलतः दो भागो मेे बाटा गया है जिसे हम बाह्य शरीर(स्थूल शरीर), और आंतरिक शरीर (सूक्ष्म शरीर) कहते है ।

स्थूल शरीर को देख सकते है और सूक्ष्म शरीर को महसूस कर सकते  हैं।

हमारा शरीर पंच तत्वों से मिल कर बना है


 जिसमे - सूर्य,अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी है ।


 हर एक तत्व के मूल में दो प्रकार की ऊर्जाएं होती है,-


बाह्य ऊर्जा (स्थूल तत्व )आंतरिक ऊर्जा (सूक्ष्म तत्व)।


अब उदाहरण के लिए हम जल तत्व की बात करते है


जब हम जल पीते है तो उसमे दोनों तत्व होते है हमारा यह स्थूल शरीर उस स्थूल तत्व को ग्रहण करता है जिससे हमारा यह स्थूल ( भौतिक ) शरीर अपनी जरूरत को पूरा करता है और शारीरिक विकास संभव हो पाता है।


और सूक्ष्म शरीर जल के सूक्ष्म तत्व ऊर्जा को ग्रहण करता है जिससे  सूक्ष्म शरीर का विकास हो पाता है 


जैसे हमारे स्थूल शरीर (भौतिक शरीर) के लिए भोजन,हवा,जल आवश्यक है जिससे शरीर का विकास हो पाता है, वैसे ही सूक्ष्म शरीर के लिए भी वह ऊर्जा उतनी ही आवश्यक है जो उसके विकास के लिए जरूरी है।


लेकिन आज के समय में सभी का चिंतन इस स्थूल शरीर तक ही सीमित है जिससे असाध्य रोग बड़ते जा रहे है रोगी प्रतिरोधक छमता घटती जा रही है ।


जैसे - शरीर में जल,शुद्ध हवा की कमी या सूर्य के प्रकाश की कमी से शरीर में बहुत से ऊर्जा की कमी के कारण शरीर कमजोर पड़ जाता है उसमे बहुत से असाध्य रोग बड़ जाते है उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर में भी ऊर्जा की कमी पड़ जाती है जिससे सूक्ष्म शरीर भी कमजोर पड़ जाता है जिससे ऐसे रोग हो हो जाते है जिसका उपचार आसानी से संभव नहीं।


यही कारण है कि सूक्ष्म शरीर के कमजोर पड़ने और विकास ना हो पाने की वजह से अनेक विकार पैदा हो रहे है आत्मविश्वास कमजोर होता जा रहा है सकारात्मक ऊर्जा का अभाव पड़ रहा है और ऐसे में आध्यात्मिक और साधनात्मक उन्नति भी संभव नहीं हो पा रही है।


इसलिए शरीर मेे ऊर्जा का महत्व सर्वोपरि है जितनी ऊर्जा भौतिक शरीर के लिए आवश्यक है उतनी ही सूक्ष्म शरीर के लिए l


दिव्य उर्जा कि साधना कर हम :-

1) रोगो का उपचार कर सकते है

2) ध्यान मे तीव्रता से प्रगती पा सकते है 

3) कुंडलिनी जागरण मे सहायक

4) चक्रो का शुद्धीकरण 

5) निरोगी जीवन, धन आकर्षण एवं व्यक्तीत्व मे निखार आदी और भी बहुत सी अन्य सफलताए पा सकते।


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