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कृपा कैसे मिलती है




 

अनुकूलता भोजन है, प्रतिकूलता विटामिन है और चुनौतियाँ वरदान है और जो उनके अनुसार व्यवहार करें.... वही पुरुषार्थी है...."

ईश्वर की तरफ से मिलने वाला हर एक पुष्प अगर वरदान है.......तो हर एक काँटा भी वरदान ही समझें....

ॐ गं गणपतये नमः

पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है। धन 

प्राप्ति के  उपाय, 

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(1) लक्ष्मीजी के किसी भी मंत्र का जप बुधवार या शुक्रवार से शुरू करें तथा नित्य कमल गट्टे की एक माला ( 108 बार) जाप करें। 


(2) विष्णुसहस्रनाम तथा श्रीसूक्त का एक-एक पाठ नियमित करें तथा श्री लक्ष्मीजी को गुलाब या कमल पुष्प चढ़ाएं।


(3) अपने वरिष्ठ व्यक्तियों का सम्मान करें। घर-परिवार में सबसे प्रेम-व्यवहार करें।


(4) प्रात: जल्दी उठकर घर की सफाई करें तथा स्नानादि कर अपना पूजन-जप इत्यादि कर दिन की शुरुआत करें। जहां सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सोते हैं, वहां धन नहीं आता। दुर्गंधयुक्त स्थान तथा अशुद्ध स्थान पर लक्ष्मी नहीं ठहरती।


(5) गाय-कुत्ता, भिखारी को यथासंभव खाना इत्यादि दें। न दे सकें तो भी उन्हें दुत्कारें नहीं। 


(6) घर में कूड़ा-करकट, अटाला इत्यादि जमा न होने दें। समय-समय पर सफाई करें। 

 

(7) संध्या के पश्चात झाड़ू-बुहारी न करें। यदि करें तो कचरा घर के बाहर न फेंकें।


(8) झाडू संभालकर रखें तथा खड़ी न रखें। ऐसी रखें कि किसी की नजर उस पर न पड़े। झाड़ू को कभी उलांघें नहीं, न ही पैर की ठोकर लगे।


(9) कपड़े स्वच्छ व धुले हुए हों। इत्र-सेंट का प्रयोग अवश्य करें।


(11) पूजन यदि नित्य करते हैं तो समय व स्थान निश्चित रखें। 10-15 मिनट से ज्यादा का फर्क न हो। ऐसा होने पर देवता शाप दे देते हैं।  


(12) ईशान दिशा में गंदगी न होने दें। 


(13) घर-दुकान-फैक्टरी आदि में उत्तर, पूर्व, ईशान खुली हो तथा इन दिशाओं में सुगंधित पुष्प वाले तथा तुलसी के पौधे लगाएं। 


 

(14) दक्षिण-नैऋत्य, पश्चिम में कोई गड्ढा, बोरिंग, हौज इत्यादि न हो तथा जहां भी वास्तुदोष हो, वहां एक स्वस्तिक बना दें। हमेशा बाथरूम में नल इत्यादि से पानी न टपके, ध्यान रखें।






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