सात प्रकार के शरीरों की संरचना ::-
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1. स्थूल शरीर:
पशुओं के पास सिर्फ भौतिक शरीर ही होता है। इन प्रथम सात वर्षों में मनुष्य और पशुओं में कोई विशेष अंतर नही पायी जाती है। बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिनका सिर्फ भौतिक शरीर ही निर्मित हो पाता है है। ऐसे लोग पशुवत जीवन ही जीकर मरजाते हैं।भौतिक शरीर में रहने वालों में नकल करने की आदत होती है। उस समय तक बुद्धि का विकास नही हो पाता है। इसलिए पहले सात वर्षों तक बच्चों में अनुकरण अथवा नकल करने की प्रवृत्ति प्रधान रूप से बनी रहती है।
2. आकाश शरीर:
व्यक्ति में भावनाओं का जन्म होता है। उसमे प्रेम और आत्मीयता की प्रवृत्ति विकसित हो जाती है। अब व्यक्ति अपने तक सीमित नही रहता है। वह दूसरों से भी अपने संबंधों का ताना बाना बुनने लगता है। इसीके कारण वह पशुओं से कुछ ऊपर उठ पाता है। उसमे मनुष्य होने की गरिमा आने लगती है।
3. सूक्ष्म शरीर:
तीसरे शरीर में विचार बुद्धि और तर्क की क्षमता विकसित होने लगती है। इस अवधी में शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति विकसित हो जाती है। बौद्धिक चिंतन एवम् विचार इस शरीर के प्रमुख आयाम हैं।
दूसरे और तीसरे शरीर पर रुकने वालों के लिए जन्म, मृत्यु और जीवन ही सब कुछ है।
4. मनस शरीर:
विचार-जगत से भाव-जगत व मनस-जगत अधिक गहरा होता है। मन की प्रधानता के कारण ही व्यक्ति मनुष्य कहलाता है। इस शरीर में चित्रकारिता, काव्य, साहित्य, संगीत आदि कलात्मक भावों की प्रधानता होने लगती है। सम्मोहन, टेलीपैथी, दूरदर्शिता ये सब चौथे शरीर की संभावनाएं हैं। यद्यपि इस शरीर में धोखे और खतरों की संभावना बहुत अधिक होती है,
चौथे शरीर का अनुभव स्वर्ग-नर्क का है।
कुण्डलिनी जागरण चौथे शरीर की घटना है।
5. आत्म शरीर:
इसे अध्यात्म शरीर, spiritual body भी कहते हैं। चौथे शरीर में कुण्डलिनी शक्ति जगे, तो ही पाँचवे शरीर में प्रवेश हो सकता है अन्यथा नहीं। भिन्न भिन्न प्रकार की सिद्धियाँ/ दिव्य शक्तियाँ प्राप्त होती है। यहाँ पर एक खतरा यह भी है की पांचवे शरीर पर पहुँच कर आत्मा के स्तित्व का अनुभव तो होता है परंतु परमात्मा अभी भी प्रतीति से दूर रहता है। सिद्धियाँ प्राप्त होने पर अहंकार होने का खतरा रहता है। कई योगी इस चरण में ही योग भ्रस्ट हो जाते है और आगे की साधना नही कर पाते हैं।
मोक्ष पांचवे शरीर की अवस्था का अनुभव है।
6. ब्रह्म शरीर: -
छठा शरीर ब्रह्म शरीर कहलाता है। इसे cosmic body भी कहते हैं। ऐसा व्यक्ति जो आत्मा को पाँचवे शरीर में उपलब्ध करले तथा उसको पुनः खोने को भी राजी हो, केवल वही छठे शरीर में प्रवेश कर सकता है। ।
अहम् ब्रह्मास्मि ' (मैं ही ब्रह्म हूँ) की घोषणा छठे शरीर की सम्भावना है,
7. निर्वाण शरीर:
यह कोई शरीर नही है, बल्कि देह शून्यता (bodylessness) की स्थिति है। वहां पर शरीर जैसी कोई स्थिति नहीं रहती है। शून्य ही शेष बचता है शेष सब समाप्त हो जाता है
इस प्रकार उपरोक्त सातों शरीरों की स्थितियां है। छठे शरीर में पहुंचने पर मोक्ष के भी पार ब्रह्म की सम्भावना है। वहां न कोई मुक्त है और न अमुक्त। ' लेकिन अभी एक कदम और बाकी है और वह है की जहाँ न अहम्, न ब्रह्म। जहाँ मैं-तू दोनों नही, परम शून्य। परम निर्वाण की स्थिति है- यही सातवें शरीर की स्थिति है।
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