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अभिवादन और उसका उत्तर


प्रणाम व अभिवादन की विशिष्ट विविधता -

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जिसने खाली हाथ हिला कर अभिवादन किया हो, उसे हाथ हिलाकर ही उत्तर दिया जाता है;


जिसने शिर हिलाकर अभिवादन किया हो, उसे शिर हिलाकर उत्तर दिया जाता है;


जिसने झुक कर अभिवादन किया हो उसके शिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद मुद्रा में उत्तर दिया जाता हेै;


बराबर वाले को दाहिना हाथ या दोनों हाथ  मिलाकर, उत्‍तर दिया जाता है;

अपने से किसी प्रकार से (आयु, विद्या, यश और बल  में  कोई थोड़ा बड़ा हो तो बड़ी श्रद्धा से,  दोनों हाथों से सामने वाले के हाथ पकड़कर उन्हें अपने माथे पर लगाकर, कृतज्ञ भाव से उत्‍तर दिया जाता है; 


 नाते रिस्तेदारी में कोई समकक्ष या अति प्यारा व्यक्ति हो तो उसे बाँह भरकर गले लगाकर शुभकामनायें दी जाती हेै;


कम उम्र वाले को स्नेहभाव से हृदय से लगाते हुए उसका शिर भी चूमा जाता है।

सादर प्रणाम करने वालों  को,  उनके शिर पर हाथ रखकर ही शुभाशीर्वाद दिया जाता हेै।

 


नमन् करते समय निम्नानुसार ईश्वर का नाम भी लिया जाता है या अभिवादन शब्‍द बोला जाता हैः-

 महापुरुषों के लिए 'सादर चरण स्‍पर्श 


अपने से आयु अथवा योग्‍यता में बड़ों के लिए  ''सादर प्रणाम'' या ''प्रणाम'

समान आयु अथवा योग्‍यता वालों से- राम-राम, राधे राधे, जय श्रीकृष्ण, जय रामजी की, नमस्ते, नमस्कार, सत्त श्री अकालजी, जय हिन्द, जय भारत;

 साधु महात्‍माओं के लिए हरिओम, नारायण, नमो- नारायण, नमो शिवाय अथवा प्रणाम, चरणस्पर्श, सादर चरणस्पर्श, पाँयलागीं; आदि शब्‍द बोलकर अभिवादन व प्रणाम किया जाता है।


तदनुसार उत्तर भी उपरोक्त शब्दों में ही दिया जाता है। 

अपने से छोटी आयु के व्‍यक्तियों को चिरंजीव, दीर्घायु, प्रसन्न भव, सुखी भव, खुश रहो, शुभाशीष, आशीर्वाद;

आयु में छोटी विवाहित महिलाओं से, "सौभाग्यवती भव", "पुत्रवती भव", "संतानवती भव";


अविवाहित कन्याओं के लिए - "आयुस्मती भव", "कल्याणी भव", "खुश रहें", सुखी रहो, आदि शुभ कामना शब्दों के साथ अभिवादन का उत्तर दिया जाता है। 

साधु संतों के अलावा,  सामान्यतया अन्य लोग,  अविवाहित कन्याओं से (उन्हें देवी का रूप मानते हुए) अपने पाँव नहीं छूने देते।



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